क्यों हो रही स्कूली बच्चों की हार्ट अटैक से मौत?
दिल्ली हाल ही में यूपी के अमरोहा में यूकेजी में पढ़ने वाली 7 साल की बच्ची को स्कूल में हार्ट अटैक आया और उसकी मौत हो गई। इसके पहले मार्च में फिरोजाबाद में 8 साल के बच्चे की स्कूल में हार्ट अटैक से जान चली गई। वहीं जयपुर के एक निजी स्कूल में 14 साल के बच्चे को स्कूल में प्रेयर के दौरान कार्डिएक अरेस्ट हुआ और बच्चा बच नहीं सका। ये ज्यादातर घटनाएं स्कूलों में ही हुई हैं, जब इतने छोटे-छोटे बच्चों की पलभर में जान चली गई है। इन मामलों में सबसे बड़ा सवाल यही है कि दिल बैठा देने वाली इन घटनाओं के पीछे क्या वजह है? children dying of heart attack
इन घटनाओं पर कार्डियोलॉजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया के सदस्य और सर गंगाराम अस्पताल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. अश्विनी मेहता ने कई चौंकाने वाली बातें जाहिर की। डॉ.मेहता ने कहा कि जैसा कि कहा जा रहा है कि हार्ट अटैक से मौत हो गई, वास्तविकता में यह हार्ट अटैक नहीं होता जैसा कि आमतौर पर लोगों को होता है, बल्कि यह सडन कार्डिएक डेथ होती है. बच्चों को सडन कार्डिएक अरेस्ट होता है और उनकी 1 घंटे के अंदर-अंदर मौत हो जाती है। ये नॉर्मल हार्ट अटैक से अलग चीज है।
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वे बताते हैं कि यह बच्चों में पहली बार देखने को नहीं मिल रहा है, इसतरह के केस हमेशा होते रहे हैं। फिर चाहे यह 7 साल के बच्चे में हो या 1 या उससे कम उम्र के बच्चों में भी हो सकते हैं। जो ये अचानक मौत होती हैं, वे बच्चों में हार्ट की अंडरलाइन बीमारियों की वजह से होती है, जिनका पता आमतौर पर किसी को नहीं होता है। मां-बाप को भी नहीं पता होता है कि बच्चे को हार्ट संबंधी कोई इश्यू है। इसके पीछे वजह ये है कि इनके लक्षण भी बहुत साफ नहीं होते हैं। कुछ लोगों की फैमिली हिस्ट्री की वजह से भी बच्चों में ये दिक्कत आती है, जबकि कुछ रेयरेस्ट बीमारियों की वजह से भी बच्चों की सडन कार्डिएक डेथ होती है।
बच्चों में कार्डिएक अरेस्ट के लिए हार्ट की ये दो अंडरलाइन बीमारियां सबसे ज्यादा जिम्मेदार होती हैं। पहली है हाइपरट्रॉफिक कार्डियोमायोपैथी, जिसमें हार्ट की मसल्स मोटी और बढ़ जाती हैं, जिससे हार्ट को पंप करने में परेशानी होती है। और दूसरी बीमारी है लॉन्ग क्यूटी सिंड्रोम जो हार्ट का रेयर रिदम डिसऑर्डर है जो हार्ट बीट को कंट्रोल करने वाले इलेक्ट्रिकल सिस्टम को प्रभावित करता है। heart attack
source – ems