शनि जयंती 6 जून को मनेगी, इस तरह करें पूजा मिलेगा अच्छा फल
हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को शनि जयंती का पर्व मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन सूर्य देव और माता छाया के पुत्र शनिदेव का जन्म हुआ था। शनिदेव को न्याय का देवता माना गया है। हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को शनि जयंती का पर्व मनाया जाता है।
मान्यता है कि इस दिन सूर्य देव और माता छाया के पुत्र शनिदेव का जन्म हुआ था। शनिदेव को न्याय का देवता माना गया है। इस विशेष दिन पर शनि की पूरे विधि-विधान से पूजा करने से जीवन से जुड़े सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है। शनि देव की कृपा दृष्टि जिस भी व्यक्ति पर रहती है, उसे हर मनचाहे फल की प्राप्ति होती है।
शनि जयंती इस बार 6 जून 2024 को मनेगी। हर साल ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को शनि जयंती मनाई जाती है। माना जाता है कि ज्येष्ठ अमावस्या तिथि के दिन ही शनिदेव का जन्म हुआ था। हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि का आरंभ 5 जून 2024 को शाम 7 बजकर 54 मिनट पर होगी, जबकि अमावस्या तिथि समाप्त 6 जून को शाम 6 बजकर 7 मिनट पर होगी।
शनिवार की कथा का महत्व
एक समय की बात है. सभी ग्रहों में सर्वश्रेष्ठ होने को लेकर विवाद हो गया. वे सभी ग्रह सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु इंद्र देव के पास गए. वे भी निर्णय करने में असमर्थ थे, तो उन्होंने सभी ग्रहों को पृथ्वी पर राजा विक्रमादित्य के पास भेज दिया क्योंकि वे एक न्यायप्रिय राजा थे.
सभी ग्रह राजा विक्रमादित्य के पास पहुंचे और अपने विवाद के बारे में बताया. राजा विक्रमादित्य ने सोच विचार के बाद नौ धातु स्वर्ण, रजत, कांस्य, पीतल, सीसा, रांगा, जस्ता, अभ्रक और लौह से सिंहासन बनवाया और उनको क्रम से रख दिया. उन्होंने सभी ग्रहों से इस पर बैठने को कहा. साथ ही कहा कि जो सबसे बाद में बैठेगा, वह सबसे छोटा ग्रह होगा. लोहे का सिंहासन सबसे अंत में था, जिस वजह से शनि देव सबसे अंत में बैठे. इस वजह से वे नाराज हो गए. Shani dev Puja
उन्होंने राजा विक्रमादित्य से कहा कि तुमने जानबूझकर ऐसा किया है. तुम जानते नहीं हो कि जब शनि की दशा आती है तो वह ढाई से सात साल तक होती है. शनि की दशा आने से बड़े से बड़े व्यक्ति का विनाश हो जाता है. शनि की साढ़ेसाती आई तो राम को वनवास हुआ और रावण पर शनि की महादशा आई तो उसका सर्वनाश हो गया. अब तुम सावधान रहना. Shani dev katha
कुछ समय बाद राजा विक्रमादित्य पर शनि की महादशा शुरू हो गई. तब शनि देव घोड़ों का व्यापारी बनकर उनके राज्य में आए. राजा विक्रमादित्य को पता चला कि एक सौदागर अच्छे घोड़े लेकर आया है, तो उन्होंने उनको खरीदने का आदेश दिया. एक दिन राजा विक्रमादित्य उनमें से एक घोड़े पर बैठे, तो वो उनको लेकर जंगल में भाग गया और गायब हो गया.
राजा विक्रमादित्य का बुरा वक्त शुरु हो गया. भूख प्यास से वे तड़प रहे थे, तो एक ग्वाले ने पानी पिलाया, तो राजा ने उसे अपनी अंगूठी दे दी. फिर नगर की ओर चल दिए. एक सेठ के यहां पानी पिया. अपना नाम उज्जैन का वीका बताया. सेठ वीका को लेकर घर गया. वहां उसने देखा कि एक खूंटी पर हार टंगा है और खूंटी उसे निगल रही है. देखते ही देखते हार गायब हो गया. हार चुराने के आरोप में सेठ ने वीका को कोलवाल से पकड़वा दिया.
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वहां के राजा ने वीका का हाथ-पैर कटवा दिया और नगर के बाहर छोड़ने का आदेश दिया. वहां से एक तेली गुजर रहा था, वीका को देखकर उस पर दया आई. उसने उसे बैलगाड़ी में बैठाकर आगे चल दिया. उस समय शनि की महादशा समाप्त हो गई. वीका वर्षा ऋतु में मल्हार गा रहा था, उस राज्य की राजकुमारी मनभावनी ने उसकी आवाज सुनी, तो उससे ही विवाह करने की जिद पर बैठ गई. हारकर राजा ने बेटी की विवाह वीका से कर दिया. Shani Jayanti
एक रात शनि देव ने वीका को स्वप्न में दर्शन दिए और कहा कि तुमने मुझे छोटा कहने का परिणाम देख लिया. तब राजा विक्रमादित्य ने शनि देव से क्षमा मांगी और कहा कि उनके जैसा दुख किसी को न दें. तब शनि देव ने कहा कि जो उनकी कथा का श्रवण करेगा और व्रत रहेगा, उसे शनि दशा में कोई दुख नहीं होगा. शनि देव ने राजा विक्रमादित्य के हाथ और पैर वापस कर दिए. Shani Jayanti
जब सेठ को पता चला कि मीका तो राजा विक्रमादित्य हैं, तो उसने उनका आदर सत्कार अपने घर पर किया और अपनी बेटी श्रीकंवरी से उनका विवाह कर दिया. इसके बाद राजा विक्रमादित्य अपनी दो पत्नियों मनभावनी एवं श्रीकंवरी के साथ अपने राज्य लौट आए, जहां पर उनका स्वागत किया गया. राजा विक्रमादित्य ने कहा कि उन्होंने शनि देव को छोटा बताया था, लेकिन वे तो सर्वश्रेष्ठ हैं. तब से राजा विक्रमादित्य के राज्य में शनि देव की पूजा और कथा रोज होने लगी.
शनि जयंती पूजा विधि
शनि जयंती के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र धारण करें। फिर एक चौकी पर काले रंग का कपड़ा बिछाकर शनिदेव की प्रतिमा स्थापित करें। अब शनिदेव की पंचामृत से अभिषेक करें और उन्हें सरसों का तेल और फूल अर्पित करें। इसके बाद शनिदेव के समक्ष दीपक जलाकर आरती करें। इसके बाद वहां बैठकर शनि मंत्र व शनि चालीसा का जप करें। पूजा के बाद शनि देव को मिठाई या इमरती का भोग लगाएं। अंत में अपनी क्षमतानुसार कुछ वस्तुओं का दान करें।
Source – EMS/NEWS18