एक साल में तीन लाख से अधिक प्लास्टिक बोतलों का हो रहा है निपटान

More than three lakh plastic bottles are being disposed of in a year
More than three lakh plastic bottles are being disposed of in a year

इंदौर। शहर अब कई नवाचार के साथ देश के बड़े शहरों के लिए एक मॉडल के रुप में विकसित होता जा रहा है। पिछले पांच सालों की लगातार मेहनत ने अब इंदौर को एक ओर मुकाम दिलाया है। एक साल में चार लाख टन से अधिक कार्बन का उत्सर्जन कम होना बड़ी उपलब्धि है। वहीं जो प्लास्टिक की बोतलें सड़कों के किनारे जला दी जाती थी वह भी समाप्त हो गई है और तीन लाख से अधिक प्लास्टिक बोतलों का निपटान हो रहा है।

सात बार स्वच्छता में अव्वल इंदौर ने सफाई के दम पर हानिकारक गैसों का उत्सर्जन भी कम किया है। यह शहर, प्रदेश और देश के लिए भी फायदेमंद है। शहर में साल भर में 4 लाख टन से अधिक कचरा निकलता है। बेहतर तरीके से इसका निपटान होने के कारण एक साल में 4 लाख 1 हजार 500 टन कार्बन उत्सर्जन में कमी आई है। यदि इस कचरे का निपटान नहीं किया जाता या इसे लैंडफिल करते या जलाते तो 5 लाख 21 हजार 950 टन कार्बन उत्सर्जन होता। कचरे के निपटान के दौरान बहुत मामूली उत्सर्जन होता है।

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इसके अलावा शहर में प्रतिदिन निकलने वाली 5 से 8 हजार प्लास्टिक बोतल का भी निपटान होता है। यानी एक साल में लगभग तीन लाख से अधिक बोतलों का निपटान हो रहा है। यदि इन्हें जलाते या खुले में फेंकते तो इसके दुष्प्रभाव वातावरण पर पड़ते। एक प्लास्टिक बोतल को जलाने से 3 से 6 किलो कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित होती, जो एक कार के लगभग 1,000 किलोमीटर चलने के बराबर है। इंदौर में डोर टू डोर कचरा कलेक्शन सिस्टम है। देश के कई शहर यह मॉडल लागू नहीं कर सके हैं। मानकों के अनुसार कचरा निपटान से हानिकारक गैसों का उत्सर्जन कम हुआ है। शहर से प्रतिदिन निकलने वाले करीब 1200 टन कचरे में से 1100 से 1150 टन कचरे का निपटान किया जाता है। प्लास्टिक से बनी चीजों और बोतलों का प्लांट में निपटान होता है। कुछ ही वर्षों में नगर निगम और स्मार्ट सिटी ने 10 लाख टन कार्बन वातावरण में मिलने से रोका है।

यदि 1 टन कचरे को लैंडफिल करते हैं या उसका निपटान नहीं होता है तो 1.3 टन कार्बन उत्सर्जित होता है। हमारी प्रोसेसिंग में 0.3 टन कार्बन ही निकलता है। कचरे का निपटान कर बायो सीएनजी प्लांट ने कुछ वर्ष पहले करीब डेढ़ लाख कार्बन क्रेडिट अर्न किए थे। आगे कार्बन क्रेडिट की संया और ज्यादा होगी। कचरे को लैंडफिल (जमीन में दबाने) या जलाने से भारी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड निकलती है। रिसाइकलिंग और कंपोजिट के साथ निपटान से कार्बन उत्सर्जन में कमी आती है।