आत्महत्या करने वालों में महिलाओं से ज्यादा पुरुष
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नई दिल्ली (ब्यूरो)। मर्द को दर्द नहीं होता…. यह कहावत सुनने में भले ही अच्छी लगती हो, लेकिन सच्चाई तो यह है कि मर्द को भी दर्द होता है। मर्द अपना दर्द भले ही दिखाता न हो, लेकिन सुसाइड के आंकडे इस बात की पुष्टि करते है कि मर्द को भी दर्द होता है। बेंगलुरु की एक कंपनी में बतौर एआई इंजीनियर काम कर रहे अतुल सुभाष मोदी ने खुदकुशी कर ली है।
सुसाइड से पहले उन्होंने तकरीबन 1 घंटा 20 मिनट का वीडियो भी पोस्ट किया है। साथ ही 24 पन्नों का सुसाइड नोट भी लिखा है। इसमें उन्होंने पत्नी निकिता सिंघालिया और उसके परिवार वालों को अपनी मौत का जिम्मेदार बताया है। अतुल और निकिता की शादी 2019 में हुई थी। शादी के बाद से ही निकिता और उसके परिवार वाले किसी न किसी बसने से उनसे पैसे मांगते थे। वीडियो में अतुल कह रहे हैं कि मुझे खुदकुशी कर लेनी चाहिए, क्योंकि मैं जो पैसा कमा रहा हूं, उससे मेरे दुश्मन और मजबूत हो रहे हैं।
एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक आत्महत्या के मुख्य कारणों में 32 फीसद पारिवारिक समस्याएं और 19 फीसद गंभीर बीमारियां (एड्स, कैंसर आदि) शामिल हैं। साल 2022 में शादी से जुड़ी समस्याओं के कारण 8,164 लोगों ने आत्महत्या की, जिनमें से 52 फीसद पुरुष थे। एनसीआरबी के आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलता है कि आत्महत्या करने वालों में महिलाओं की तुलना में पुरुषों की संख्या कहीं अधिक है।
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दो दशकों के आंकड़े बताते हैं कि भारत में सुसाइड करने वाले हर 10 में से 6 या 7 पुरुष होते हैं। साल 2001 से 2022 के दौरान हर साल आत्महत्या करने वाली महिलाओं की संख्या 40 से 48 हजार के बीच रही। जबकि इसी दौरान सुसाइड करने वाले पुरुषों की संख्या 66 हजार से बढ़कर एक लाख के पार चली गई। साल 2022 में 1.70 लाख से अधिक लोगों ने आत्महत्या की थी, जिनमें से 1.22 लाख से अधिक पुरुष थे। यानी हर दिन औसतन 336 पुरुष आत्महत्या कर लेते हैं।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों से पुष्टि
एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार भारत में आत्महत्या करने वालों में महिलाओं की तुलना में पुरुषों की संख्या काफी अधिक है। साल 2022 में भारत में 1.70 लाख से अधिक आत्महत्याओं में 1.22 लाख पुरुषों ने अपनी जान दी। भारत में हो रही हर 10 आत्महत्याओं में से 6-7 पुरुष शामिल हैं। आयु वर्ग की बात करें तो, 30 से 45 साल के लोग सबसे अधिक आत्महत्या कर रहे हैं। अध्ययन के अनुसार, समाज पुरुषों को मजबूत और भावनात्मक रूप से स्थिर मानता है। ऐसे में ये अपनी मानसिक समस्याओं की साझा नहीं कर पाते।
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