गोराकुंड का नाम पहले गणेश बाग था
गोराकुंड रामद्वारा इंदौर
गोराकुंड का नाम पहले गणेश बाग था यहां राजा की गोरा नाम की नृत्यांगना का बगीचा था जिसमें यह कुंड था ।नृत्यांगना को राजा बहुत चाहते उसने राजा से मांग की थी कि इस जगह का नाम मेरे नाम से रखा जाए इसीलिए राजा ने गणेश बाग से इस जगह का नया नाम नृत्यांगना के नाम से गोराकुंड रख दिया।
इस कुंड में इतना पानी था कि पानी कुंड से बाहर निकलकर आसपास के इलाकों में चला जाता था। उस समय के राजा ने उस पानी को रोकने के लिए एक अत्यंत मोटा बहुत बड़ा कुंड के बराबर तवा बनवाया उस तवे से इस कुंड को ढकवा ना पड़ा। तथा बंद करवाना पड़ा ।उसी कुंड पर जानकी नाथ भगवान विराजमान है कहते हैं कि उस कुंड में सरजू नदी का जल प्रवाह था ।तवा लगाने से पानी का बहाव तात्या की बावड़ी लाल अस्पताल मल्हारगंज में चला गया। जो सारे इंदौर के लोगों की प्यास बुझाती है ।
जानकीनाथ मंदिर के पीछे और करोना शूज की दुकान के बीच की जगह इसीलिए खाली थी कोई मकान नहीं था लेकिन कुछ वर्ष पूर्व लोगों ने वहां अब बिल्डिंग बनालि है। आज भी वहां पानी की बहुत अच्छी है आव है ।
जब रामद्वारा में बोरिंग की खुदाई हुई तब 10फुट पर ही पानी आ गया।गोराकुंड चौराहा इंदौर शहर की नाक है। राजवाड़ा से मल्हारगंज तक इंदौर की खास पहचान है ।गोराकुंड के चारों तरफ जरूरत के सारे मार्केट हैं आधा किलोमीटर में सभी जरूरत की सामग्री मिल जाती है ।क्लॉथ मार्केट, बजाजखाना, पुस्तकों का भंडार खजूरी बाजार, छोटा बड़ा सराफा, बर्तन बाजार, लोहार पट्टी ,धान मंडी, सब्जी मंडी आदि आदि चौराहे के पास है।गोरा कुंड चौराहा स्वर्ग पुरी है। जानकीनाथ मंदिर जहां शंकर भगवान, हनुमान जी ,लक्ष्मी नारायण, सीताराम जी, राधा कृष्ण भगवान विराजमान हैं।बाहर मां जगदंबा आशीर्वाद दे रही है ।एक और जैन मंदिर है एक तरफ रामद्वारा रामद्वारे के पीछे मस्जिद भी है।
बड़ा गणपति से राजवाड़ा तक सभी धर्मों के मंदिर यहां स्थापित है यह एक ऐसा स्थान है जहां सभी धर्म के लोग रहते हैं सभी के धार्मिक स्थान सगुण भक्ति की स्थापना है तो निर्गुण भक्ति के लिए हमारा रामद्वारा भी है
इस रामद्वारा की स्थापना सवा 200 वर्ष पूर्व अंतरराष्ट्रीय रामस्नेही संप्रदाय के तृतीय आचार्य श्री दुल्हेरामजी महाराज ने की थी।
यह स्थान ऐसा है जहां से किसी भी धर्म के त्योहार हो यहां मनते हैं । हिंदू से मुस्लिम जैन सिंधी वैष्णव सभी धर्मों के जुलूस अखाड़े इस चौराहे से जरूर निकलते हैं चाहे वह राजनीतिक हो। जो कोई भी उसी चौराहे से निकलते हैं ।इंदौर शहर के बीच ऐसी यह पवित्र भूमि गोराकुंड है। स्वामी जी श्री श्री 1008 श्री दूल्हेरामजी महाराज को यह भूमि भक्ति के लिए अति शुभ लगी ।
और आपने यहां विराजमान होकर भक्ति की।
श्री दुल्हेरामजी महाराज
जब जब भारत में पापाचार बढ़ने लगता है तब तब इस वसुंधरा पर महापुरुषों का अवतार होता है और उन दिव्य महापुरुषों के त्याग तप सत्य अहिंसा दम भक्ति दर्शन आदि से पापवृतियों का लोप होकर प्राणियों में सद्भावना भक्ति की जागृति होती है। इसी कारण इस भारत भूमि को स्वर्ग पूरी करते हैं ।जहां जन्म लेने के लिए देवता भी आतुर होते हैं इसीलिए महापुरुषों की दुंदुभी सर्वत्र देश विदेशों में बज रही है ।
श्री दुल्हेरामजी
महाराज का अवतार राजस्थान की पवित्र गुलाबी नगरी जयपुर में जयपुर के राज्य मंत्री सुखदेव जी और मां विष्णुकांता के यहां हुआ था ।इनकी माता की तुलना मां सीता लक्ष्मी सुमित्रा अनुसूया मां मंदालसा से की जाती है ।सर्वगुण संपन्न सुंदर गुणों से युक्त थी। ऐसे राजघराने में आपका अवतार होता है ।आपका स्वरूप सूर्य के समान तेजस्वी, पूर्णिमा के चांद के समान शीतल और सुंदर मुखड़ा गौरवर्ण स्वरूप ,लंबा भाल है ऐसे बसंत के समान सुंदर स्वरूप का राज्य परिवार में जन्म हुआ ।इसलिए जन्मोत्सव बहुत जोरदार मनाया गया ।
पश्चात वेद विधि से आपका दयानिधि नाम रखा गया वेद गुरु ने भविष्यवाणी की दयानिधि कामदेव के समान सुंदर संपन्न शांति मतिशाली,दानी और महान योगी होंगे सभी कलाओं में कौशल रहेंगे ।
हमने गीता रामायण श्रीमद्भागवत जैसे अनेक ग्रंथों को पढ़ा और सुना ,ऋषि मुनि संतो की महिमा सुनी लेकिन सतयुग से लेकर कलयुग में आज तक ऐसे बिरला संत न हुए ना आगे कोई संभावना है।
राजघराने में जन्म होता है पुत्र को सर्वगुण संपन्न देख माता-पिता उदयपुर के मेदपाट मंत्री की कन्या चंद्रप्रभा से जो सर्वगुण संपन्न ज्ञान बुद्धि में निपुण ऐसी सुंदर कन्या से विवाह की बात पक्की होती है ।शुभ मुहूर्त देखकर विवाह की तारीख निश्चित होती है ।जब लगन लिखा रहे थे तब द्वार पर
श्री महाप्रभु रामचरणजी महाराज प्रगट होते हैं और निम्न साखी फरमाते हैं।
क्यूं काला कागद करो, इन बातों क्या होय।
रामचरण भज राम को दिलका दस्ता धोय।
यह सुन दयानिधि विचार करने लगे तो रिश्तेदार कहते हैं अरे क्या सोच रहे हो साधु लोगों का तो काम ही यही है और लगन लिखे जाते हैं। विवाह का मुहूर्त निकलता है दयानिधि राजघराने से थे इसलिए राजकीय ठाट बाट से उनकी बारात उदयपुर के लिए निकलती है।विभिन्न प्रकार के मणी, माणिक, स्वर्ण जड़ित आभूषणों से दूल्हे का श्रृंगार किया जाता है।बारात में हाथी घोड़े ऊंट नर्तकी नाचने वाले गाने वाले कई तरह के बाजे आधी ऐसी बारात निकलती है जैसे भगवान शिव की निकली थी जुनिया नगर के राजा बारात रात्रि विश्राम के लिए अपने राज्य में रुकवाते हैं।
सुबह जब दयानिधि अपने मित्रों के साथ शोच के लिए जाते हैं कुछ दूर जाने के पश्चात एक वृक्ष की छाया में तपोनिस्ठ,ब्रम्हनिस्ठ कोटि-कोटि सूर्य के समान तेजस्वी श्री श्री 1008 श्री रामचरण जी महाप्रभु के दर्शन होते हैं।दयानिधि उनके समीप जाकर प्रणाम करते हैं तब महाप्रभु फरमाते हैं
आया था कुछ और को वणी और से और ।
डेरा खोया गांव का देख चले लाहौर
तब दयानिधि कहते हैं कि महाराज मुझे और सुखदाई वचन फरमाइये। श्री महाप्रभु फरमाते हैं
या लाखनी देह व्रथा ते गुमाई करो राम नाम को याद सुफल होजाई
तब दयानिधि के मित्र उन्हें कहते हैं कि यहां साधुओं के बीच बैठ गया इनका तो काम ही प्रवचन करना है और उन्हें उठाकर आगे ले जाते हैं। लेकिन दयानिधि का मन विचलित रहता है वह फिर पीछे मुड़कर देखते हैं तो ना तो वृक्ष है नहीं संत यह देखते ही दयानिधि समझ जाते हैं कि स्वयं प्रभु मुझे जागृत करने के लिए दर्शन देने आए थे ।अब मुझे उन्हीं की शरण में जाना चाहिये।अपने मित्रों से कहते हैं तुम यहीं रुको मैं आगे झाड़ियों में शोच करके आता हूं। श्री दयानिधि मित्रों को वहीं छोड़कर झाड़ियों में अपने दूल्हे के वस्त्र आभूषण सब खोल कर रख देते हैं वह महाप्रभु के दर्शन के लिए दौड़ लगाते हैं । उधर बहुत समय तक न पहुंचने पर मित्र चिंता करते हैं बहुत ढूंढते हैं ना मिलने पर विश्राम डेरे पर जाकर सब को बताते हैं ।
इधर दयानिधि दौड़ते दौड़ते 12 कोस की दूरी पर श्री रामनिवास धाम शाहपुरा पहुंच जाते हैं जहां संत शिरोमणि श्री महाप्रभु रामचरणजी महाराज ध्यान मग्न रहते हैं। उनके दर्शन पाकर दयानिधि प्रणाम करते हैं गुरुदेव में आप की शरण में आ गया हूं कृपा कीजिए मुझको इस भवसागर से पार कीजिए श्री करुणानिधान भक्तवत्सल श्री महाप्रभु 1008 श्री रामचरण जी महाराज उन्हें शरण में लेते हैं । सूर्य के समान तेज है चंद्रमा के समान शीतल
और सुंदर दिखाई दे रहे हैं शरीर पर हल्दी लगी है हाथों में मेहंदी लगी है भाल पर टीका लगा है विभिन्न प्रकार से श्रृंगारित थे ।ऐसे दूल्हे के वेश में देख कर श्रीमहाराज फरमाते हैं कि दूल्हे संसार के प्रपंच को त्याग कर मन को निश्चल कर राम नाम महामंत्र का जाप करो ।
तभी से श्रीमहाराज श्री महाप्रभु ने दयानिधि से दूल्हे के रूप में आए थे इसलिए दूल्हेराम नाम दिया आपने ज्ञान भक्ति वैराग्य धारण कर गुरु सेवा में चित्त् लगाकर दिन-रात राम-राम की रटन लगाई।
आज भी श्री रामनिवास धाम में श्री दुल्हेरामजी महाराज की छतरी को तोरण वाली छतरी कहते हैं क्योंकि तोरण मारने तो दुल्हन के यहां जा रहे थे । परंतु रास्ते में ही वैराग्य धारण कर श्री राम के दरबार में तोरण मारा इसीलिए उनकी छतरी को तोरण वाली छतरी कहते हैं।
कलियुग में ऐसा बिरला संत न हुआ न आगे संभावना है। जिन्होंने रिद्धि सिद्धि का त्याग कर वैराग्य धारण किया ध्रुव के समान ध्यानि थे, भरत के समान त्यागी थे, कपिल मुनि के समान ज्ञानी थे ऐसे वितरागी महाराज श्री दूल्हेरामजी महाराज थे।
श्री महाराज की सेवा करते अनुशासन का पालन करते। श्री महाप्रभु की आज्ञा से राम-राम का डंका बजाने शाहपुरा से प्रस्थान करते हैं उनके कई शिष्य बन जाते हैं जहां-जहां भी बैठकर भजन करते हैं वहां रामद्वारा का निर्माण हुआ है ।आप जंगलों से होते हुए गुजरात प्रदेश में राम नाम का डंका बजाते हैं आगे बड़ौदा फिर रतलाम बड़नगर होते हुए इंदौर शहर में पधारते हैं।
इन्दौर शहर में गणेश बाग को भजन के लिए उचित भूमि समझकर वहां भजन करते हैं। इस भूमि पर इंदौर में करीब 1 वर्ष तक भजन किया है और इस भुमि को धन्य किया। यह उनकी भजन की पवित्र महाभूमी है गोराकुंड। इंदौर शहर में उनके अनेकों शिष्य बन जाते हैं । उनके साथ में उनके शिष्य जिनका निर्मल चरीत्र है धर्मो उपदेशी कृपालु है जिन्होंने कई प्राणियों को निहाल कर दिया ऐसे नाम निहाली संत श्री जनरामनरहरजी महाराज को फरमाते हैं कि अब हम श्री राम नाम का प्रचार करने आगे जाएंगे तुम यहीं गणेश बाग गोराकुंड पर भजन करो और यहां रामद्वारे की स्थापना होती है। इसीलिए रामद्वारे पर दूल्हेरामजी महाराज की साखी के पश्चात श्री जनरामनरहर जी की साखी बोली जाती है ।
राम गुरु अरु संत जन, ये मेरे उर माय
जनरामनरहर वंदन करें हस्त जोड़ शिर नाय
फिर दूल्हेरामजी महाराज अवंतिका होते हुए सींहोर पधार कर फिर शाहपुरा श्री महाराज की सेवा में उपस्थित हो जाते हैं ।श्री महाराज फरमाते हैं कि दूल्हेरामजी अब तुम हमारी सेवा में शाहपुरा में ही रहो।
गोराकुंड रामद्वारा ऐसे महान तपस्वी महापुरुषों की भक्ति स्थल है । जहां एक से एक विद्वान संत हुए हैं ।संत श्री अमृतरामजी महाराज अभी विराजमान है ।अमृतरामजी के दादा गुरु श्री नवनिध्द रामजी महाराज तपस्वी विद्वान भक्त वात्सल्य थे। आपके बहुत से शिष्य थे आपकी आवाज बहुत मधुर थी गुरुजी बताते थे कि गोपीचंद, भरतरी ,रामायण, गोपी गीत बहुत ही सुंदर मधुर आवाज में गाते थे आप जब ब्रह्मलीन हुए तो अपने प्रिय शिष्यों को सपने में पहले ही दर्शन दे दिया था कि हम अब ब्रह्म में मिलने जा रहे हैं ।
उनके अग्नि संस्कार के बाद काशी के पात्र अग्नि से वापस प्राप्त हुए जिनके विशेष तिथियों पर दर्शन होते हैं। उनके शिष्य मेरे सदगुरुदेव श्री 108 श्री सन्मुख रामजी महाराज की महिमा जितनी करो उतनी कम है आप शास्त्री पंडित ज्ञानी महान विद्वान संत थे अच्छे-अच्छे विद्वानों को पीछे छोड़ देते थे आप की मधुर भाषा थी आप कथा इतनी मधुर भाषा में समझाते थे एक बार सुनने के पश्चात उसे कभी भूल नहीं सकते थे। रामद्वारा में दिन में चार बार सत्संग होता था सुबह वाणी पाठ प्रवचन ,दोपहर में भक्तों के पसंद के ग्रंथ की कथा, संध्या आरती ,गुरुवार को शाम को पाठ , गुरुवार और एकादशी रात्रि जागरण ,चैत्र महीने में रामचरितमानस का मासपारायण पाठ और कुंवार महीने में रामचरितमानस के नह्वान पारायण के पाठ होते थे। अलग-अलग मंडलिया उन पारायण में आकर अपनी अपनी प्रस्तुति देती थी ।श्रीमद् भागवत सप्ताह 9 दिन करते थे 1 दिन महात्तम 7 दिन सप्ताह आखरी दिन गीता और मार्कंडेय पुराण। सुबह 8:00 से 12:00 दोपहर 2:00 से 6:00 बजे तक होती थी ।उनकी मधुर वाणी से सुनी भागवत आज भी मौखिक याद है।
होली पर रात्रि जागरण प्रहलाद चरित्र का पाठ और 3 दिन तक प्रहलाद चरित्र की कथा को समझाते हुए करते थे पश्चात शाहपुरा प्रस्थान करते थे ।पूर्व आचार्य श्री रामकिशोरजी महाराज की पदरावनी बड़े गणपति से गाजे-बाजे लाव लश्कर के छत्र चंवर के साथ होती थी। गुरुदेव महु से मिलिट्री बैंड बुलाते थे सबसे आगे मिलिट्री बैंड फिर इंदौर के बैंड बाजा पश्चात भजन मंडलिया भजन गाते हुए महाराज श्री की पदरावनी होती थी। आपने अखिल भारतीय संत सम्मेलन भी चौराहे पर करवाया था। जिसमें सभी धर्म के महान विद्वान संत पधारे थे उस दिन चौराहे के चारों रोड पर इतनी जनता थी कि कई दूरी तक पैर रखने को जगह नहीं थी ऐसे महान विद्वान मेरे गुरुदेव थे। आपको आचार्य पद के लिए चुना गया था आपने अपनी गुरु भक्ति के कारण आचार्य पद को स्वीकार नहीं किया क्योंकि यदि मैं आचार्य बन जाऊंगा तो मेरे गुरुदेव को मुझे प्रणाम करना पड़ेगा मैं अपने गुरु को अपने चरणों में प्रणाम नहीं करा पाऊंगा यह सोचकर आपने आचार्य पद त्याग दिया ऐसे गुरु भक्त श्री 108 श्री सन्मुख रामजी महाराज थे। पश्चात श्री स्वामी जी श्री श्री 1008 श्री रामकिशोरजी महाराज को आचार्य पद सुशोभित किया गया ।
रामद्वारा में अखंड राम धुन चलती है ।एक बार दो दोस्त अपने रिश्तेदार को स्टेशन छोड़कर रात्रि 2:00 बजे पैदल ही घर लौट रहे थे उन्होंने रामद्वारा के सामने रामजी राम राम महाराज कर प्रणाम किया।तो अंदर से वापस जवाब आता है
राम राम राम राम राम राम सा एसा जागृत रामद्वारा गोराकुंड है ।रामद्वारे के कई चमत्कार है, संतो की महिमा है, लिख लिख कर थक जाउंगी मगर वह पूरी नहीं होंगी। गुरुदेव की इच्छा गौशाला और अन्नक्षेत्र की थी। वह आज हातोद कांकरीया रोड पर रामस्नेही गौवशाला है। इसका संचालन
अमृतरामजी महाराज कर रहे हैं ।अन्नक्षेत्र गोराकुंड रामद्वारा से चलरहा है।
रोजाना करीब 25 किलो आटे की रोटी सब्जी दाल पकवान रामद्वारे पर गरीबों को दिया जाता है ।अमृतराम जी महाराज अपने गुरु की इच्छा अनुसार कर रहे हैं। इंदौर में गोराकुंड रामद्वारा पद में सबसे बड़ा है रामद्वारा की पन्द्रवी गांधी पर श्री अमृतरामजी महाराज विराजमान है। और सभी रामस्नेही परंपरा को सकुशल निभा रहे हैं । विद्वान है, सर्व गुण संपन्न हैं। ज्योतिषशास्त्र में महान विद्वान है। भक्तों की सेवा निशुल्क करते हैं उनका दुख दर्द दूर करते हैं । यहां के संत इस राम द्वारे के स्थाई सन्त हैं ।जहां हजारों की तादाद में शिष्य हैं ।गुरुपूर्णिमा को सुबह 5:00 बजे से पूजा शुरू होती है यहां तक की लाइन लगाकर पूजा करनी पड़ती है वह रात्रि 11:00 बजे तक शिष्य आते रहते हैं ।इतने रामस्नेही शिष्य गोराकुंड रामद्वारे के हैं ।
ऐसा महान भक्ति स्थल इंदौर शहर की नाक पर बीचो-बीच गोराकुंड चौराहे पर
गोराकुंड रामद्वारा है
राम जी राम राम महाराज
सी पी गुप्ता लेखक हैं