यक्षी-चौबीसी की विलक्षण अम्बिका प्रतिमा

-डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’, इन्दौर

सतना (मध्यप्रदेश) के पतौरा ग्राम के पतियान दाई का एक मन्दिर है। इस देवी मंदिर में विलक्षण अम्बिका प्रतिमा विराजमान थी जो वहाँ से चोरी होने और खण्डितावस्था में प्राप्त होने के उपरान्त राजकीय संग्रहालय इलाहाबाद में सुरक्षित रखा गया जो अब भी यहाँ संरक्षित है।

तीर्थंकर परम्परा के तिल्लोयपण्णत्ति आदि कई ग्रन्थों के अनुसार प्रत्येक तीर्थंकर के एक यक्ष और एक यक्षी होते हैं। भक्ति से संयुक्त चौबीस यक्ष-यक्षी का जाड़ा ऋषभादि चौबीस तीर्थंकरों के पास में स्थित रहते हैं। इनका शिल्पांकन उन तीर्थंकर की प्रतिमाओं के परिकर में किया जाता रहा है। उनमें से कुछ यक्ष व यक्षी की एकल प्रतिमाएँ भी प्राप्त हुई हैं। चक्रेश्वरी, अम्बिका, ज्वालामालिनी और पद्मावती आदि कुछ यक्षियों को तो देवी के रूप में पूजा जाता रहा है और इनकी स्वतंत्र मूर्तियाँ तथा मंदिर बनवाये जाते रहे हैं। सतना (मध्यप्रदेश) के पतौरा ग्राम के देवी मंदिर में विलक्षण अम्बिका प्रतिमा विराजमान थी जो वहाँ से चोरी होने और खण्डितावस्था में प्राप्त होने के उपरान्त राजकीय संग्रहालय इलाहाबाद (उ. प्र.) में सुरक्षित रखा गया जो अब भी यहाँ संरक्षित है।
बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ की यक्षी अम्बिका की यह प्रतिमा विलक्षण इस कारण है कि इसके परिकर में तेईस अन्य तीर्थंकरों की यक्षियों की प्रतिमाएँ भी शिल्पित हैं तथा उनके नाम भी उन प्रतिमाओं के साथ टंकित किये गये हैं। यही नहीं इसके परिकर में और भी अप्रतिम शिल्पन है, जो इसे अब तक उपलब्ध अंबिका प्रतिमाओं में अद्वितीय स्थापित करता है।

बलुआ पाषाण के शिलाफलक में शिल्पित यह प्रतिमा एक छोटे आयताकार आसन पर खड़ी है, जिसमें एक साधारण कमल बना हुआ है, पादपीठ में एक पुरुष तथा एक महिला आकृति बैठी हुई उत्कीर्णित है। पुरुष के एक हाथ में दण्ड या गदा जैसा आयुध और दूसरे हाथ में धनुषाकार कोई आयुध है। स्त्री पात्र के दोनों हाथों में कोई फल जैसी कोई वस्तु लिये दर्शाया गया है। देवी के पादमूल में बायें तरफ एक आराधक पुरुष और दायें एक महिला भक्त की क्षतिग्रस्त आकृतियाँ हैं।
अंबिका तात्कालिक समय के प्रचलित व देवोचित आभूषणों से भूषित है। इनके कण्ठ मे हार, मुक्ता माल, स्तनहार, कण्ठिका, बांहो मे भुजबन्द, हाथों में नागावलि सुशोभित है, कानों में कर्णाभरण, , मस्तक पर करंडमुकुट, केश-विन्यास त्रिवल्यात्मक है, बालों को एक बड़े जूड़े में बांधा गया है जो दाहिने कंधे पर टिका हुआ है। पावों में पाजेव, कड़े,ं पिंडलियों पर पायल, लटकती घंटियों वाला करधनी,  प्रभामंडल में एक तारकीय कमल का फूल है। अंबिका केे सिर के ऊपर आम के पेड़ की पत्तियाँ खुदी हुई थीं, जो भग्न हो जाने से अब गायब हैं। यह चतुर्भुजा यक्षी है।

अंबिका के बाम पार्श्व में एक बालक खड़ा है, जिसके दोनों हाथ भग्न हैं, एक हाथ ऊपर को है, जिससे अंबिका की करांगुलि पकड़े दर्शाये जाने की परम्परा है। यह बालक नग्न प्रतीत होता है, किन्तु कमर में द्विवलय युक्त मौज्जीबंध, भुजाओं में कड़ा और गले में हसुली जैसा मोटा आभरण है। दायें पार्श्व में पुष्ट सिंहारूढ़ अपेक्षाकृत बड़ा बालक दर्शाया गया है, इसे कुछ अधिक आभूषणों से भूषित शिल्पित किया गया है जैसे लड़ी युक्त कट्याभरण, मणिमाला, स्तनमाला,  कुण्डल आदि। सिंह अंबिका का वाहन है और दो बालक इसके पूर्वभव के प्रियंकर और शुभंकर बेटे कहे गये हैं।
परिकर में तेईस अन्य यक्षियों के अंकन हैं। सबसे नीचे  नवग्रह शिल्पित हैं, उनके ऊपर से बायें से दायें, नीचे ऊपर के बढ़ते क्रम में यक्षियों को शिल्पित किया गया है। यहाँ हम यक्षी के नाम के साथ जो अंक दे रहे हैं उसे तीर्थंकर का क्रम अंक समझा जाए। अम्बिका के दायें पार्श्व में नीचे से ऊपर की ओर- 1 चक्रेेश्वरी, 2  अजिता, 5 पूसाधि, 7  काली, 9 महाकाली, 11 गौरी, 13 वैरोटा, 15 अनंतमती और 17 जया।

बायें पार्श्व में नीचे से ऊपर की ओर- 3 प्रजापति, 4 वज्रसंकला, 6 मनुजा, 8 ज्वालामालिनी, 10 मानुषी, 12 गंधर्वी, 14 अनंतमती, 16 महामानुसि और 18 अपराजिता है। शीर्ष पर पाँच यक्षियाँ उत्कीर्णित हैं- 19 बहुरूपिणी, 20 चामुंडा, 21 सरस्वती, 23 पद्मावती और 24 विजया। इस तरह अंबिका को मिलाकर चौबीस तीर्थंकरों की चौबीस यक्षियाँ एकसाथ उत्कीर्णित हैं। सभी यक्षियों को चतुर्भुजा आयुध सहित दर्शाया गया है। सभी यक्षियों के शास्त्रोक्त वाहन भी शिल्पित हैं।वितान में सर्वोच्च शीर्ष पर पाँच लघुजिन उत्कीर्णित हैं।

मध्य में पद्मासन तीर्थंकरसुंदर देवकुलिका में हैं, उनके आसन पर उभरा हुआ शंख लांछन शिल्पित है, जिससे ये तीर्थंकर नेमिनाथ निर्धारित होते हैं, नेमिनाथ की यक्षी है अंबिका। इनके दोनों ओर एक-एक कायोत्सर्गस्थ लघु जिन हैं और उनके उपरान्त एक-एक पद्मासनस्थ लघु जिन उत्कीर्णित हैं। इन पद्मासनस्थ जिनों के दोनों ओर माल्यधारी उड्डीयमान देव उत्कीर्णित हैं।

परिकर में पार्श्वोत्कीर्ण यक्षिणियों के बाहरी ओर एक के ऊपर एक चार-चार कायोत्सर्गस्थ लघु जिन शिल्पित हैं। इनके ऊपरी किनारों पर क्रमशः गजमुख, ब्याल, मकरमुख और अभिषेक-घट धारण किये हुए मानवाकृति है। यह शिल्पन दोनों ओर है। संभवतः यह फलक 10-11वीं शतब्दी का है। कई पुराविदों ने लिखा है कि चौबीस यक्षियों की एकसाथ ऐसी प्रतिमा अन्यत्र नहीं देखी गई है।